अब सवाल यह है कि आखिर इस बार आसमान से इतनी आग क्यों बरस रही है?
वैज्ञानिकों के अनुसार आसमान से बरसती आग ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन का ही असर है। जलवायु परिवर्तन से न सिर्फ तापमान बढ़ रहा है बल्कि मौसम का पैटर्न भी बदल रहा है, जो भविष्य में सामने आने वाले गंभीर खतरों का स्पष्ट संकेत है। तापमान में पहले के मुकाबले तेजी से बदलाव आ रहा है, जिसका खामियाजा सभी को भुगतना पड़ रहा है। तापमान में वृद्धि से आगामी वर्षों में लू, गर्मी का मौसम ज्यादा समय तक रहने और सर्दी के मौसम का समय घटने जैसी स्थितियां पैदा होंगी। इस बारे में मौसम वैज्ञानिकों का स्पष्ट तौर पर कहना है कि जिस जलवायु परिवर्तन के बारे में अब तक हम केवल पढ़ते-सुनते रहे थे, वह अब हमारे सामने आकर खड़ा हो गया है।
दिल्ली-एनसीआर समेत पूरे उत्तर भारत का एक बड़ा हिस्सा पिछले कुछ महीनों से भीषण गर्मी की मार झेल रहा है. ऊपर से लू के गर्म थपेड़ों ने आदमी की हालत ओर खराब कर दी है। अब तो हालत ये है कि लोगों का घरों से निकलना तक मुश्किल हो गया है। यही नहीं अब तो रात में भी पसीने नहीं सूख रहे. दिल्ली-एनसीआर समेत पूरे उत्तर भारत में अधिकतम तापमान 50+ डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। बढती गर्मी और लू के थपेड़ों की वजह से न जाने कितनी जाने लीन हो रही हैं। पिछले कुछ दिनों में दिल्ली के निगम बोध घाट स्तिथ शमसान घाट पर जलती चिताओं की संख्या में हो रही लगातार लगातार वृद्धि इसी ओर इशारा कर रही है कि अगर इंसान अभी नहीं जागा तो भविष्य में इसके परिणाम ओर भी घातक होने वाले हैं ? दुनिया में बढ़ती गर्मी के लिए जलवायु परिवर्तन को दोषी माना जाता रहा है, लेकिन साथ ही बेतहाशा होता शहरीकरण भी उतना ही दोषी है। आज जिस तरह प्राकृतिक आवासों को पाट कंक्रीट के जंगल तैयार करने की जो होड़ लगी है, जिससे दिल्ली जैसे शहरों में तो इसका खुलकर असर सामने आने लगा है, जहां दिन ही नहीं रात में भी तापमान गिरने का नाम नहीं ले रहा। विशेषज्ञों के अनुसार बढ़ते तापमान और गर्मी में शहरीकरण की बड़ी भूमिका है, जो न केवल स्थानीय बल्कि वैश्विक स्तर पर भी बढ़ते तापमान की वजह बन रहा है। लेकिन यह शहरी विस्तार गर्मी में कितना योगदान दे रहा है, यह लम्बे समय से सवालों के घेरे में रहा है।
हालांकि पहले यह माना जाता था कि दुनिया में शहरी विस्तार इतना कम है, जो बड़े पैमाने पर जलवायु को प्रभावित नहीं कर सकता। लेकिन एक नए अध्ययन से पता चला है कि शहरीकरण वैश्विक तापमान में होती वृद्धि को स्पष्ट रूप से प्रभावित कर रहा है। वैज्ञानिकों का यह भी मत है कि जैसे-जैसे शहरी विस्तार बढ़ रहा है, उसके साथ ही जलवायु पर उनका प्रभाव और बढ़ सकता है। बहुत सारे शोध इस बात की पुष्टि करते हैं कि बढ़ते शहरीकरण सीधे तौर पर जलवायु को प्रभावित कर रहा हैं। उदाहरण के लिए शहरी इमारतें गर्मी को सोख लेती हैं और उसे अपने में समेटे रहती हैं। नतीजन शहरों को ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में गर्म और ठंडा होने में कहीं ज्यादा समय लगता है। इसका मतलब है कि शहरों में रहने वाले लोगों को ग्रामीणों की तुलना में ज्यादा समय असहज गर्मी का सामना करना पड़ता है। इसका अनुभव आप भी कर सकते है। ज्यादातर यह वृद्धि एशिया में दर्ज की गई है। आंकड़ों के मुताबिक जहां अमेरिका ने इस दौरान शहरी क्षेत्र में 181 फीसदी की वृद्धि देखी है। वहीं भारत के लिए यह आंकड़ा 366 फीसदी रहा, जबकि चीन में 413 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। इन क्षेत्रों में गर्मी तेजी से बढ़ रही है, जो कहीं न कहीं बढ़ते शहरीकरण की देन है। शोधकर्ताओं के मुताबिक शहरीकरण इस स्तर पर पहुंच चुका है कि वैश्विक जलवायु पर उसके प्रभाव पहले से कहीं ज्यादा स्पष्ट हैं, लेकिन उत्सर्जन और इंसानी बदलावों की तुलना में उनका प्रभाव अभी भी कम है। हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), भुवनेश्वर ने अपने एक अध्ययन में खुलासा किया है कि भारतीय शहरों में बढ़ती गर्मी के करीब 60 फीसदी के लिए बढ़ता शहरीकरण जिम्मेवार है। बढ़ती गर्मी पर शहरीकरण का यह प्रभाव जबलपुर, गोरखपुर, आसनसोल, जमशेदपुर, मंगलौर, श्रीनगर, भागलपुर, भुवनेश्वर, मुजफ्फरपुर, कटक, देहरादून और रायपुर जैसे शहरों पर कहीं ज्यादा स्पष्ट है। कुल मिलकर देखें तो अध्ययन किए गए भारतीय शहरों में शहरीकरण ने बढ़ते तापमान में औसतन 0.2 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक का योगदान दिया है। यदि दिल्ली से जुड़े आंकड़ों को देखें तो शहरीकरण ने बढ़ती गर्मी में 32.6 फीसदी का योगदान दिया है। अनुमान है कि 2050 तक दुनिया की 68 फीसदी आबादी शहरों में रह रही होगी। देखा जाए तो सामाजिक उन्नति का संकेत माने जाने के बावजूद तेजी से होते अनियोजित शहरीकरण ने दुनिया के कई हिस्सों में पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा पैदा कर दिया है, इससे स्वयं इंसान भी सुरक्षित नहीं रहेगा।
ईश्वर सिंह ने ठीक कहा है : –
ऐ इन्सान ऐसा न हो कि तुम करवटे बदलते रहो ओर चाँद सूरज न बन जाए …
ईश्वर सिंह
स्वतंत्र लेखक एवं सामाजिक चिन्तक