धरती पर बारिश की हर बूंद लोगों के लिये भगवान के आर्शीवाद के समान है। ताजे बारिश का पानी जमीन पर मोती के समान गिरता है, इसलिये विकासशील क्षेत्रों और प्राकृतिक जल संसाधनों की कमी वाले शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में खासतौर से बारिश के पानी के महत्व को हरेक को समझना चाहिये।
पृथ्वी के लगभग 71 फीसदी हिस्से पर पानी ही है। इसके अलावा 1-6 फीसदी पानी जमीन के नीचे है। यानि इतना सब होने पर भी सबसे मुश्किल वस्तु है पानी। पृथ्वी की सतह पर जो पानी है उसमें से 97 फीसदी महासागरों में है, जोकि खारा/नमकीन होने के कारण पीने योग्य नहीं है। मात्र 3 फीसदी पानी ही पीने योग्य है जिसमें से 2.4 फीसदी पानी उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के ग्लेशियरों में जमा हुआ है। कमोवेश यह भी पीने के लिए सुलभ नहीं है। अब बचता है मात्र 0.6 फीसदी पानी। वहीं जिसे पीने के लिए प्रयोग में लाते हैं, जोकि नदियों, झीलों और तालाबों में है।
इसके अलावा जमीन के नीचे मौजूद 1.6 फीसदी पानी के भण्डार में से भी पीने हेतु पानी निकाला जाता है। इसके बाद भी गर्मियों के मौसम में प्रायः देश के अधिकांश हिस्सों में सूखे जैसे हालत हो जाते हैं।
जैसा कि सभी सदस्यों को याद होगा, 2019 की गर्मियों में, चेन्नई के सभी जलाशय सूख गए, जिससे सरकार को एक दिन में एक करोड़ लीटर पानी भरने के लिए मजबूर होना पड़ा। एक ऐसे शहर के लिए जहां साल में औसतन 1,400 मिमी बारिश होती है, जो लंदन से दोगुने से भी ज्यादा है, यह अभूतपूर्व था। और सिर्फ चेन्नई ही नहीं, भारत भर के शहरों में भारी जनसंख्या वृद्धि और तेजी से, अनियोजित शहरीकरण के कारण पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है।
वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) की 2020 की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि जनसंख्या में तेज वृद्धि के कारण 2050 तक 30 भारतीय शहरों को ‘गंभीर जल जोखिम’ का सामना करना पड़ेगा।
स्थिति पहले से ही चिंताजनक है। केंद्रीय जल आयोग द्वारा ट्रैक किए गए 91 सबसे महत्वपूर्ण जलाशयों में, हाल के वर्षों में भंडारण स्तर अपनी कुल क्षमता के आधे से अधिक कभी नहीं पार किया है। इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि लंबे समय तक, अंधाधुंध भूजल दोहन से अधिकांश भारतीय शहरों में जल स्तर तेजी से गिर रहा है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के एक अध्ययन के अनुसार, भारत की शहरी जल आपूर्ति का 48 प्रतिशत भूजल से आता है, और भारत के 10 सबसे अधिक आबादी वाले शहरों में से सात में, पिछले दो दशकों में भूजल स्तर में काफी गिरावट आई है, जोकि निरंतर जारी है।
2030 तक, देश की पानी की मांग उपलब्ध आपूर्ति से दोगुनी होने का अनुमान है, जिसका अर्थ है कि करोड़ों लोगों के लिए पानी की गंभीर कमी और देश के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 6% का नुकसान।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश की राजधानी इस विकट समस्या का केंद्र बनती जा रही है, जोकि एक गंभीर चिंता का विषय है।
जल की कमी वाले क्षेत्रों में पानी उपलब्ध कराने के लिये बहुत सालों से सबसे चिरस्थायी और असरदार तरीका बारिश के पानी को एकत्रित करना है।
बारिश के पानी को कुछ खास तरीकों से इकठ्ठा करने की प्रक्रिया को वर्षाजल संग्रहण या रेनवॉटर हार्वेस्टिंग कहते हैं। इसकी मदद से जमीन के भीतर के पानी का स्तर बढ़ जाता है। ये तकनीक पूरी दुनिया में अपनाई जा रही है। इस प्रणाली का इस्तमाल भारत सरकार/राज्य सरकार द्वारा चिन्हित किये गए उन क्षेत्रों में किया जाना चाहिए जहाँ पर प्रति वर्ष 200 मिलीमीटर से कम बारिश होती है। ताकि उन क्षेत्रो को पाइप लाइन या अन्य माध्यमों से मदद पहुंचाई जा सके।
बारिश के पानी को जमा करने के फायदों को देखते हुए, भारत के बहुत से शहरों के प्रशासन बारिश के पानी को इकठ्ठा करने के विचार को लोकप्रिय बनाने और इस व्यवस्था को लागू करने की कोशिश कर रहे हैं। ताकि, निजी और सरकारी इमारतों, मकानों और हाउसिंग सोसाइटी, संस्थानों और सार्वजनिक स्थलों पर वर्षा जल के संचयन की सुविधा स्थापित की जा सके। परन्तु इस कोशिश में प्रगति लाने की जरूरत है।
उदाहरण के लिए दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर, बारिश के पानी को इकठ्ठा करने के लिए तीन सौ से अधिक कुएं बनाए गए हैं। इनसे भूगर्भ जल के खजाने को फिर से बेहतर बनाया जाता है। चूंकि, दिल्ली हवाई अड्डे पर पानी का उपयोग लगभग 45 लाख लीटर प्रतिदिन होता है। इसलिए, बारिश के पानी को जमा करके, और उपयोग किए जा चुके पानी को रिसाइकिल करके, पानी की इस भारी मांग को पूरा करने की कोशिश करते हैं। ऐसा करके एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया, पहले से ही भारी जल की मांग के बोझ तले दबी दिल्ली शहर की जल आपूर्ति व्यवस्था पर दबाव कम करने में भी सहयोग करता है।
शहरी विकास संसदीय समिति ने साल 2015 में पेश अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की था कि केंद्र सरकार के सभी कार्यालय और रिहायशी भवनों पर रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया जाना चाहिए। समिति ने यह भी कहा था कि इससे संबंधित अपडेटेड आंकड़ा तैयार किया जाए।
शहरी विकास मंत्रालय के मुताबिक प्रति 100 स्क्वायर मीटर क्षेत्र की छत से हर साल 55,000 लीटर तक जल का संरक्षण किया जा सकता है।
अत: जल का संरक्षण/बचाव करना हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए वरदान साबित होगा। इसके लिए हमें आगे आकर पहल करनी पड़ेगी ताकि सरकार द्वारा और सामजिक संस्थाओं के द्वारा चलायी जा रही योजनाओं को अपना कर अपनी पीढ़ी को सुरक्षित कर पायें।
श्री गोपाल राम जी ने ठीक कहा है : –
…इंसान हर आवश्यकता की पूर्ति रुपयों से कर सकता है, पर भविष्य में अपने लिए पानी की पूर्ति नहीं कर पाएगा I
इसलिए, जल का संरक्षण कीजिए…
ईश्वर सिंह
स्वतंत्र लेखक एवं सामाजिक चिन्तक